Naturopathy

प्राकृतिक चिकित्सा

प्राकृतिक चिकित्सा क्रमिक रूप से पंचतत्वों की चिकित्सा है; पंचमहाभूतों के द्वारा चिकित्सा है— मिट्टी, जल, हवा, अग्नि यानी भाप या वाष्प, सूर्य चिकित्सा, अकाश—उपवास, शब्द चिकित्सा, ध्वनि का गुंजन संगीत चिकित्सा है। आयुर्वेद चिकित्सा— पंचकर्म एवं जड़ी-बूटी चिकित्सा है। योग चिकित्सा– क्रियायोग, अष्टांग योग चिकित्सा है।

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प्राकृतिक चिकित्सा की आवश्यकता क्यों?

स्वास्थ्य का साधन है, स्वास्थ्य का मूल है प्रकृति के साथ सहजीवन; प्रकृति के अनुरूप जीवन। वर्तमान समय में जितनी रोग हैं वे जीवन शैली में अस्तव्यस्तता के कारण है। लाइफ स्टाईल डिसऑर्डर के कारण है।
हमारा खान-पान, रहन-सहन सोच-विचार ऐसा है कि लगता है हम प्रकृति से सुख छीन लेना चाहते हैं। पर सच्चाई यह है कि प्रकृति से सुख छीना नहीं जा सकता। जीवन का प्रकृति से, जीवन का समाज से सहचर्य होना चाहिए, सहजीवन होना चाहिए। पर आज जीवन में प्रकृति के साथ विरोध है। अगर यह मालूम हो जाय कि हम बीमार कैसे होते हैं? तो स्वस्थ्य कैसे होंगे इसका भी पता चल जाएगा।

कहने का आशय यह है कि अतिव्यस्त आधुनिक युग में स्वच्छ शरीर और स्वस्थ्य मन पाना अति दुर्लभ हो गया है। चारों तरफ प्राणघातक रोगों की बाढ़ आई हुई है। परिवार, समाज का हर तीसरा व्यक्ति कोई न कोई बीमारी से परेशान है। हमारा देश दुनिया का डायबिटीज कैपिटल है। मोटापा की बात करें तो हम दुनिया में तीसरे नंबर पर हैं। इन बीमारियों के कारण हमारे देश पर जो बोझ पड़ता है वह हमें विकसित देश बनने नहीं दे रहा है। प्रत्येक साल 5 से 6 करोड़ लोग गरीबी रेखा के नीचे चले जाते हैं, इलाज के लिए संपत्ति बेच देने के कारण। गरीब–अमीर, बच्चे–बूढ़े, महिला–पुरुष हर वर्ग का प्राणी अच्छे स्वास्थ्य को पाना चाहता है; पर कैसे? नहीं पता।

जीर्ण एवं घातक बीमारी से लड़ने के लिए आधुनिक विज्ञान ने अनेक प्रकार के विधियाँ, प्रयोग एवं हजारों प्रकार की एलोपैथिक औषधियों का निर्माण किया है। पर, वे सभी प्रयास पूर्णतः सफल तो नहीं रहे ही हैं, साथ ही इसके विपरीत प्रभाव (साइड इफेक्ट) से शरीर के आंतरिक अंग कमजोर हो जाते हैं और शरीर की रोग प्रतिरोधक क्षमता भी कमजोर हो जाती है। चिकित्सा की पद्धति ऐसी हो जिससे विकृतियों का शमन हो और नई विकृतियाँ पैदा ना हो। एलोपैथ में हम एन्टिबायोटिक ले रहे हैं। एन्टि मतलब विरोधी – बायो मतलब जीवन। वाकई एन्टिबायोटिक जीवन विरोधी बन जाता है। परंतु रोग हो ही नहीं, ऐसा अभी तक किसी ने प्रयास नहीं किया। हमें चिकित्सा के इन विधियों को अपनाना है जो शरीर से विष तो दूर करे, पर शरीर के अमृत को दूर न करें।

इसके लिए प्राकृतिक चिकित्सा एक औषधिविहीन चिकित्सा पद्धति है जिससे रोग तो ठीक होते ही हैं; साथ में भविष्य में होने वाले रोगों की संभावना समाप्त हो जाती है, इससे शरीर और मन को स्थाई रूप से संतुलित रखा जाता है। स्वास्थ्य समृद्धि केंद्र, में शरीर के आंतरिक भागों से गंदगी का निष्कासन पूरी तरह से किया ही जाता है, साथ ही जीवन शैली में अमूल–चूल परिवर्तन करके, स्वयं को स्वस्थ रखने की कला में व्यक्ति निपूण हो जाता है। जीवनी शक्ति की कमी के चलते उत्पन्न बीमारियों के कारण मन में उत्पन्न तनाव, चिंता, डिप्रेशन एवं भय आदि से मुक्त होकर आनंद, उत्साह, उमंग, प्राण शक्ति एवं संकल्प शक्ति में बढ़ोतरी होती है।

प्राकृतिक चिकित्सा हो, आयुर्वेद चिकित्सा हो या योग चिकित्सा हो, हम इनसे बढ़ाते प्राण बल ही हैं। प्राण निर्बल हो तो या फिर प्राण प्रवाह शरीर में अवरुद्ध हो तो शरीर शिथिल होने लगता है। प्राकृतिक चिकित्सा, पंचकर्म और योग ये सभी प्राण प्रवाह को सफल बनाते हैं एवं प्राण केंद्रों पर जागृत करते हैं।

प्राकृतिक चिकित्सा क्रमिक रूप से पंचतत्वों की चिकित्सा है; पंचमहाभूतों के द्वारा चिकित्सा है— मिट्टी, जल, हवा, अग्नि यानी भाप या वाष्प, सूर्य चिकित्सा, अकाश—उपवास, शब्द चिकित्सा, ध्वनि का गुंजन संगीत चिकित्सा है। आयुर्वेद चिकित्सा— पंचकर्म एवं जड़ी-बूटी चिकित्सा है। योग चिकित्सा– क्रियायोग, अष्टांग योग चिकित्सा है।